उदघाटन
कार्यक्रम के पश्चात, मंत्री जी ने टी वी केमरे की ओर जिस धृष्टता से देखा तभी लग
गया था कि फीता तो कट गया अब नाक कटने वाली है। और मंत्री जी तो ठहरे मंत्रीजी, सो निराश भी नही किया। जब वो थानेदार थे, तब क्रोध
में आगंतुक की कुर्सी को लात मार कर गिरा देते और कहते – ये तुम्हारे बाप का घर
नही है, जब तक बैठने को ना कहा जाये तब तक खड़े रहो। और सामने
खड़े प्राण के प्राण सूख जाते, बालकनी वाले तालियाँ बजाते और
स्टाल वाले चवन्नियाँ पर्दे पर उछाल देते। फिल्म हिट हो जाती। पर वो दिन और थे, मंत्रीजी, अब आप पुलिसिया नौकरी में नही हैं, जहां किसी के भी कान के नीचे दो बजाओ और जो चाहो मनवा लो। आप नेता हैं, मंत्री हैं, और जो आप बोल गए उसका आपके विभाग से भी
कोई संबंध नही। फिर किसी स्थापित वैज्ञानिक शोध पर कोई टीका टिप्पणी करने से पहले आपको
कुछ झिझक भी नही आई। क्या सोचे, गब्बर खुस होगा? सबासी देगा? अब पता नही, वे टी वी केमरों को ढूंढ
रहे थे या टी वी केमरे उन्हे। पर जैसे ही टी वी केमरों को
सम्मुख पा कर उनके अधरों में हलचल हुई, पत्रकारों का मन
तरंगित हो उठा। उनके मन में लड्डू फूटे, बूंदी के दाने चारों
ओर बिखर गए और मीडिया उन दानो को अगले कई दिनों तक बटोरती रही।
यह समाचार
लोकतांत्रिक जंगल में आग की तरह फैल गया। पुरातत्ववेत्ता अपनी शोध पत्रों में
शिलाओं की भांति जड़ मुद्रा में लीन हो गए। भूगर्भशास्त्रियों को ऐसा प्रतीत हो रहा
था मानो उन्होने अभी तक मात्र अपनी ही कब्र खोदी थी। अभी तक की स्थापित वैज्ञानिक अवधारणाए
ट्विन टावर के भांति भरभरा कर गिर रहीं थी और प्रत्यक्षदर्शी उससे उठे धूल के गुबार
में सने जा रहे थे। कक्षा नौवी के छात्रों ने पाठ्यक्रम बदले जाने की संभावना
देखते हुए अपनी पाठ्यपुस्तक के पृष्ठों को नोंच कर निकाला और हवाई
जहाज बनाए। फिर सहपाठियों पर उछाल उछाल कर आनंदित हुए। समस्त वैज्ञानिक जगत में
खलबली मच गई। ज्ञानी साधु संत मीमांसा करने लगे। धर्म संसद का आयोजन हुआ। पुरोहित, वेद उपनिषदों के प्रकांड पंडित अपने ज्ञान
सागर में डुबकी लगाने लगे। पुराने शिलालेखों, वेद, पुराण व महाकाव्यों का पुन: अध्ययन आरंभ हो गया ताकि कोई तो साक्ष्य मिले।
जब यह समाचार प्रवासी भारतीयों को भेजे गए व्हाट्स एप पोस्ट के माध्यम से विश्व के
कोने कोने में पहुंचा तो समस्त विश्व स्तब्ध रह गया। नेट जियो, डिस्कवरी और हिस्ट्री चेनल वाले अपने अभिलेखागारों में अभी तक बनाई गई
फिल्मों के अध्ययन में व्यस्त हो गए। नवीन प्रतिपादित सिद्धांतों के स्पष्टीकरण के
लिए घने जंगलों में गुप्त केमरे लगाए गए जिन पर वैज्ञानिक चाय और कॉफी पी कर रात दिन
आँखों को गड़ाए बैठे रहे। कुछ भी नया न मिलने की खीज और अवसाद के लक्षण उनके मुख पर
तथा हाव भाव में परिलक्षित होने लगे थे। शांति के लिए बराक ओबामा को नोबल
पुरुस्कार देने वाली समिति संभावित परिस्थितियों को लेकर आशंकित थी। कहीं ऐसा तो
नही कि गांधी के अतिरिक्त हमने एक और भारतीय को अनदेखा कर दिया? ऐसा क्या था जो मंत्रिवर को ज्ञात था परंतु शेष विश्व इक्कीसवी सदी में
भी अनभिज्ञ था।
समय निकट आता
जा रहा था। कौतूहल बढ़ता जा रहा था। अंतत: समस्त विश्व के ज्ञानिजनों ने सी-बी-आई
का अनुसरण कर इस केस में भी क्लोज़र रिपोर्ट प्रस्तुत कर मंत्रीजी के सिद्धांतों को
क्लीन चिट देने का निर्णय किया। यद्यपि मंत्रीजी का यह कथन,
सिद्धान्त न हो कर सिद्धहंता सिद्ध हो रहा था, परंतु क्या
करते। अज्ञानी विश्व ने शताब्दियों से जिसे सत्य समझा, उसे
सिद्ध करने वाले साक्ष्य उपलब्ध थे ही नही। समस्त ज्ञानी विज्ञानी विश्व एक ओर, हमारे मंत्रीजी एक ओर। उन सभी ने हमारे मंत्रीजी से करबद्द अभयदान की
आपेक्षा रखते हुए स्वीकार किया कि, हे न्यायमूर्ति! आप उचित कह
रहे हैं.... जो दिखे वही सत्य है। हमने गत तीन हजार वर्षों के आलेख, किवदंतियों, लोक काथाओ का अध्ययन किया, परंतु यह सिद्ध नही हुआ कि कभी भी, किसी ने भी बंदर
को मनुष्य में परिवर्तित होते हुए देखा हो। अत: बंदर हमारे पूर्वज नही हो सकते।
कपि नही, कदापि नही। यह बात अलग है कि कुछ मनुष्यों को गधे
और उल्लू जैसी बातें करते सुना है... पर उससे कुछ सिद्ध नही होता।
॥इति॥
अशेष
०७.०२.१८
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